फिल्म का नाम: अनारकली ऑफ आरा
डायरेक्टर: अविनाश दास स्टार कास्ट: स्वरा भास्कर, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा
अवधि: 1 घंटा 53 मिनट
सर्टिफिकेट: A
रेटिंग: 3 स्टार
डायरेक्टर अविनाश दास फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ से डायरेक्शन में डेब्यू कर रहे हैं. अभिनेत्री स्वरा भास्कर फिल्म में लीड रोल में नजर आएंगी. यह फिल्म कई सारे गंभीर मुद्दों की ध्यान खींचती है. बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म कैसी बनी है यह जानिए फिल्म की समीक्षा में.
कहानी
यह कहानी बिहार के आरा जिले की है जहां की सिंगर अनारकली (स्वरा भास्कर) है और उनकी मां भी गाया करती थी. बचपन में एक समारोह में दुर्घटना के दौरान अनारकली की मां की डेथ हो जाती है और अनारकली स्टेज पर परफॉर्म करना शुरू कर देती है. रंगीला (पंकज त्रिपाठी) इस बैंड का हिसाब किताब संभालता है और शहर के दबंग ट्रस्टी धर्मेंद्र चौहान (संजय मिश्रा) का दिल जब अनारकली पर आ जाता है तो एक बार स्टेज परफॉर्मेन्स के दौरान ही कुछ ऐसी घटना घट जाती है जिसकी वजह से अनारकली को धर्मेंद्र चौहान से बचकर के दिल्ली जाना पड़ता है. कहानी में कई मोड़ आते हैं और आखिरकार इसे एक अंजाम मिलता है.
क्यों देख सकते हैं इस फिल्म को
– फिल्म का सब्जेक्ट काफी सरल है और ग्राउंड लेवल की सच्चाई की तरफ इशारा करता है.
– फिल्म का एक सुर है जो पूरी फिल्म के दौरान बना रहता है और संगीत को भी उसी लिहाज से पिरोया गया है जो कर्णप्रिय है और जो लोग उत्तर प्रदेश, बिहार या कहें की नार्थ इण्डिया से ताल्लुक रखते हैं उनके लिए काफी फ्री फ्लो फिल्म है.
– फिल्म में संजय मिश्रा की बेहतरीन एक्टिंग नजर आती है और वो आपको विलेन के नाते घृणा करने पर विवश कर देते हैं. वहीँ रंगीला के किरदार में पंकज मिश्रा ने अपने किरदार पर काफी बारीकि से काम किया है जो कि परदे पर साफ नजर आता है. स्वरा भास्कर ने अपने सिंगर के पात्र को बखूबी निभाया है जिससे आप खुद को कनेक्ट कर पाते हैं.
– फिल्म का डायरेक्शन अविनाश दास ने किया है जो पहली बार किसी फिल्म को डायरेक्ट कर रहे हैं और यह प्रयास सराहनीय है.
कमजोर कड़ियां
फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसकी टिपिकल कहानी है जो शायद एक तबके की ऑडिएंस को नापसंद हो. साथ ही इसमें बोली गई भाषा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार, झारखण्ड के लोगों को पूरी तरह समझ आएगी परंतु बाकी प्रदेश के लोगों को एक फ्लो में बोले गए वाक्य शायद पूरी तरह ना समझ आएं. फिल्म के गाने भी टिपिकल हिंदी फिल्मों के गीतों के जैसे नहीं हैं इसलिए शायद सबको अच्छे ना लगे.
बॉक्स ऑफिस
फिल्म का बजट काफी कम रखा गया है और प्रमोशन के साथ-साथ मार्केटिंग भी लिमिटेड अंदाज में की गई है. पीवीआर सिनेमाज खुद इसे रिलीज कर रहे हैं. इस लिहाज से फिल्म की रिकवरी आसान हो सकती है. खास तौर से छोटे शहरों के सिंगल थिएटर्स में इस फिल्म को जगह जरूर मिलने की संभावना है.