Newton Movie Review: हर पांच साल में भारत के नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए एक पार्टी को वोट देते हैं। लेकिन इसकी प्रकिया कभी आसान और ईमानदार नहीं होती। फिल्म आपको उस एक दिन की कहानी दिखाने की कोशिश करती है जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रित देश भारत में मतदान होता है। इसे दूसरे शब्दों में ग्रेट इंडियन इलेक्ट्रॉनिक सर्कस कहा जा सकता है। इसकी वजह बहुत से लोगों को यह पता नहीं होता कि वोटिंग मशीन का इस्तेमाल कैसे किया जाता है या उन्हें किस पार्टी को वोट देना है।
फिल्म की कहानी आपको छत्तीसगढ़ के एक जंगल दण्डकारण्य में ले जाएगी। जहां लोगों ने कभी वोटिंग मशीन नहीं होती। इसी वजह से उन्हें समझाया जाता है कि वोटिंग मशीन एक खिलौना है जिसमें जो बटन अच्छा लगे उसे दबा दो। जिसका न्यूटन (राजकुमार राव) विरेध करते हैं। उनकी कोशिश होती है कि वो लोगों को चुनाव का मतलब समझा सकें और उन्हें जागरुक बना सकें। लेकिन यह काम एक दिन में तो होता नहीं है इसी वजह से उन्हें काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नक्सल प्रभावित इलाके में चुनाव करवाना आसान नहीं होता क्योंकि हर समय गोली चलने का और मौत का डर लगा रहता है। यह सब जानने के बावजूद राव उस इलाके में मतदान कराने की जिद ठान लेते हैं।
क्या वो शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करवा पाएंगे? क्या न्यूटन गांव वालों को चुनाव का असली मतलब समझा पाएंगे? इसी के इर्द-गिर्द कहानी को बुना गया है। फिल्म में ब्लैक कॉमेडी के जरिए चुनाव जैसे गंभीर विषय पर लोगों को जागरुक करने की कोशिश की गई है क्योंकि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। कहानी आपसे कई कठोर सवाल पूछने की कोशिश करती है जिसके जवाब हमारे पास नहीं होते हैं। न्यूटन एक ऐसी फिल्म है जो आपको चुनाव की सच्चाई के करीब ले जाने की कोशिश करती है।
राजकुमार राव आपको खुद को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करते हैं। वहीं देश के भार को उठाते हमारे जवानों के चुनाव में योगदान को दिखाते हैं। नक्सल और माओवादी प्रभावित स्थानों में चुनाव करना कभी भी सुनहरा अवसर नहीं होता। कई जवानों को अपनी जान गवांनी पड़ती है। उसके बाद चुनकर आए नेता कुछ करते हैं या नहीं इसपर एक रौशनी डालने की कोशिश की गई है। राजकुमार की जबर्दस्त एक्टिंग फिल्म को मस्ट वॉट बनाती है।