गुजरात में साबरकंथा जिले के एक गांव के लोगों ने फैसला किया कि वे मुहर्रम पर अपना खून बहाने के बजाए किसी जरुरतमंद को खून दान में देंगे। शिया जाफरी मशायखी मोमिन जमात ने मोहर्रम के इस अवसर पर यह कदम उठाया है। जमात का कहना है कि पैगंबर मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन की कुर्बानी पर हम खुद को जख्म देकर खून नहीं बहाएंगे। इस्लाम धर्म के लिए कुछ करने के लिए इस गांव के लोगों ने मुहर्रम के समय अपना खून दान में दिया। राज्य के तीन जिले साबरकंथा, पतन और बानसकंथा में तीन साल पहले खुद का खून बहाने की प्रथा से मुक्त हो गया था। मातम के अवसर पर लोग खुद को ब्लैड से घायल नहीं करते।
शिया जाफरी मशायखी मोमिन जमात द्वारा ईदर, सूरपुर, केशारपुरा,जैथीपुरा, मंगध जैसे गांवों और शहरों में बल्ड डोनेशन कैंप लगाता है। सिद्दीपुर के मुस्लिम समुदाय के नेता सयैद मोहम्मद मुराहिद हुसैन जाफरी द्वारा इस बदलाव की शुरुआत की गई थी। खबर के अनुसार इस मामले पर बात करते हुए साबिराली नाम के व्यक्ति ने कहा कि हमारी पीर साफ ने स्पष्ट कहा कि खुद को दर्द और जख्म देने का कोई सवाल नहीं बनता है। इस तरह खून बहाना उसे बेकार करने वाला व्यवहार है और उन्होंने हमें अपना खून यूहीं बहाने के बजार किसी जरुरतमंद को दान देने के लिए कहा।
वहीं गुलाम हैदर डोडिया ने कहा कि हमें धार्मिक नेताओं ने कहा कि मातम के समय ज्यादा शोर मचाने की जरुरत नहीं है इसलिए हम ताज़िया ले जाते समय ड्रम और गाने नहीं चलाते हैं। हम अपनी धार्मिक क्रिया के लिए दूसरों को परेशान नहीं कर सकते हैं। समुदाय में अब ब्लड डोनेशन में हिस्सा लेना काफी लोकप्रिय हो गया है। पिछले साल 35,00 ब्लड यूनिट इकट्ठा की गई थीं। इस साल मुहर्रम के पहले दिन ही 28,00 यूनिट ब्लड इकट्ठा हो गया था। इस ब्लड कैंप का आयोजन करने वाले डॉक्टर अखलाक अहमद ने कहा कि मातम के 40 दिनों तक इसी तरह से ब्लड डोनेशन कैंप चलेगा।