केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने चुनाव आयोग के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है, जिसमें आयोग ने कहा था कि चुनाव सुधारों के मद्देनजर ऐसे लोगों के लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाय जिन पर किसी भी तरह के सरकारी बिल का बकाया हो। यानी जिस किसी शख्स ने सरकारी भवनों का किराया, बिजली या टेलीफोन बिल नहीं चुकाया हो और उन पर अभी तक यह बकाया हो उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया जाय। आयोग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को इस बारे में लिखकर चुनाव कानूनों में संशोधन करने को कहा था लेकिन मंत्रालय ने इनकार कर दिया है। मंत्रालय का तर्क है कि बिल भुगतान विवाद की स्थिति में बेवजह कानूनी पेंच फंसेंगे और विवाद लंबा खिंचकर अदालतों तक पहुंचेंगे।
इस बीच, लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का पक्ष लेते हुए चुनाव आयोग ने आज कहा कि ऐसा कुछ करने से पहले तमाम राजनीतिक पार्टियों को इसके लिए सहमत करना जरूरी है। चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘चुनाव आयोग का हमेशा से नजरिया रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से निवर्तमान सरकार को आदर्श आचार संहिता लागू होने से आने वाली रूकावट के बगैर नीतियां बनाने और लगातार कार्यक्रम लागू करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।’’
उन्होंने कहा कि संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून में जरूरी बदलाव करने के बाद ही एक साथ चुनाव कराना मुमकिन हो सकेगा। मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य की विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं। रावत ने कहा कि संवैधानिक और कानूनी खाका बनाने के बाद ही तमाम तरह के समर्थन मांगना और एक साथ चुनाव कराना व्यवहार्य होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘आयोग (संवैधानिक और कानूनी बदलाव करने के बाद) ऐसे चुनाव छह महीने बाद करा सकता है।’’ उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए तमाम राजनीतिक पार्टियों की सहमति आवश्यक है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा विधानसभाओं के चुनाव 2019 के मध्य में अगले आम चुनाव के साथ होने है। रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने पर निर्वाचन आयोग से 2015 में अपना रुख बताने को कहा गया था।
निर्वाचन आयुक्त रावत ने कहा, ‘‘हमें ईवीएम के दो सेट की जरूरत होगी – एक लोकसभा के लिए और दूसरा विधानसभा चुनावों के लिए।’’ उन्होंने कहा कि और ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों के आर्डर पहले ही दिए जा चुके हैं और नई मशीनें और दूसरी चीजें आने वाले दिनों में आनी शुरू होंगी। रावत ने कहा, ‘‘ आयोग आवश्यक संख्या में ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों को 2019 के मध्य तक या जरूरी हुआ तो इससे पहले हासिल कर लेगा।’’ निर्वाचन आयुक्त के बयान की अहमियत है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की पहले ही वकालत कर चुके हैं। सरकार के नीति आयोग ने ‘राष्ट्रीय हित’ में 2024 से दो चरण में लोकसभा के चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की थी।