महाष्टमी को महादुर्गाअष्टमी के मां से भी जाना जाता है। महा अष्टमी दुर्गा पूजा के महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। नौ दिनों के इस पर्व में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। महा अष्टमी वाले दिन मां गौरी की पूजा की जाती है। अष्टमी यानि दुर्गा अष्टमी के दिन कई लोग अपना व्रत पूर्ण करते हैं और अंत में छोटी कन्याओं का पूजन किया जाता है और उन्हें घर बुलाकर उन्हें भोजन करवाकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छोटी कन्याओं को देवी का रूप माना गया है। कन्याओं के पूजन के बाद ही नौ दिन के बाद व्रत खोला जाता है। व्रत को पूर्ण करने और मां दुर्गा का आशीर्वाद लेने के लिए कन्याओं का अष्टमी और नवमी के दिन पूजन करना आवश्यक होता है। इस दिन सिर्फ मां गौरी के पूजन के साथ उनकी कथा का पाठ भी करना जरुरी होता है, इससे मां प्रसन्न होती हैं।
महा दुर्गाअष्टमी व्रत कथा-
दुर्गा अष्टमी व्रत कथा के अनुसार देवी सती ने पार्वती रूप में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोले नाथ ने पार्वती जी को देख कर कुछ कह दिया जिससे देवी का मन आहत हो गया और पार्वती जी तपस्या में लीन हो गईं। इस प्रकार वर्षो तक कठोर तपस्या करने के बाद जब पार्वती नहीं आई तो उनको खोजते हुवे भगवान शिव उनके पास पहुंचे वहां पहुंच कर मां पार्वती को देख कर भगवान शिव आश्चर्यचकित रह गए। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओझ पूर्ण था, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत, कुंध के फूल के समान धवल दिखाई पड़ रही थी, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने ने देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान दिया। एक कथा के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे उनका शरीर काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और शिव जी उनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं तब देवी अत्यंत गौर वर्ण की हो जाती हैं और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा था।
महा गौरी रूप में देवी करुनामय स्नेहमय शांत और मृदंग दिखती हैं देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुवे देव और ऋषिगण कहते हैं ”सर्वमंगल मांगलये शिवे सर्वाध्य साधिके शरन्य अम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते” महागौरी जी से सम्बंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित हैं इसके अनुसार एक सिंह काफी भूखा था जब वो भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही थी। देवी को देख कर सिंह की भूख और बढ़ गयी परन्तु वह देवी की तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया इस इंतजार में वह काफी कमजोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देख कर उन्हें उस पर दया आ गयी और मां उसे अपनी सवारी बना लेती हैं क्योंकि इस प्रकार से उसने भी तपस्या की थी इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल भी हैं और सिंह भी हैं।