Saturday, July 27, 2024
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मां सिद्धिदात्री का दिन होता है महानवमी, प्राप्त होती हैं सभी सिद्धियां…

SI News Today

शारदीय नवरात्रि में आने वाली नवमी को महानवमी भी कहा जाता है। नवमी नवरात्रि का नौवां दिन और दुर्गा पूजा का तीसरा यानि आखिरी दिन होता है। मां दुर्गा के ये नौ दिन हिंदू धर्म में बहुत ही धूम-धाम से मनाए जाते हैं। इसके बाद दसवें दिन दशहरा जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है एक बड़े पर्व के रुप में मनाया जाता है। अष्टमी की शाम से ही नवमी की तिथि लग जाती है। इस दिन नौ दिन के उपवास और तप का आखिरी दिन होता है। कन्या पूजन करके नवरात्रि का समापन किया जाता है। नवमी यानि दुर्गा नवमी के दिन कई लोग अपना व्रत पूर्ण करते हैं और अंत में छोटी कन्याओं का पूजन किया जाता है और उन्हें घर बुलाकर उन्हें भोजन करवाकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छोटी कन्याओं को देवी का रूप माना गया है। कन्याओं के पूजन के बाद ही नौ दिन के बाद व्रत खोला जाता है। मां सिद्धीदात्री का पूजन करने के बाद ही नवरात्रि का समापन किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार ऐसी मानयता है कि मां पार्वती ने महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए दुर्गा का रुप लिया था। महिषासुर एक राक्षस था जिससे मुकाबला करना सभी देवताओं के लिए मुश्किल हो गया था। इसलिए आदिशक्ति ने दुर्गा का रुप धारण किया और महिषासुर से 8 दिनों तक युद्ध किया और नौवें दिन महिषासुर का वध कर दिया। उसके बाद से नवरात्रि का पूजन किया जाने लगा। नौवें दिन को महानवमी के दिन से जाना जाने लगा। इसके साथ ही सबसे पहले भगवान राम ने रावण से युद्ध करने से पहले नौ दिन मां दुर्गा की पूजा की थी और इसके बाद लंका पर चढ़ाई करके दसवें दिन रावण का वध किया था। इसलिए नवरात्रि के अगले दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को सत्य की असत्य पर जीत और धर्म की अधर्म की जीत के रुप में मनाया जाता है।

इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है।

ऐसा माना गया है कि मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर मां की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।

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