केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने स्कूलों और कॉलेजों के छात्र-छात्राओं के लिए हॉस्टल में उनके आने-जाने की समय सीमा तय किए जाने की वकालत की है। उन्होंने दलील दी है कि ऐसा करना इसलिए जरूरी है ताकि छात्र-छात्राओं को उनके ‘हॉर्मोंस में विस्फोटक बदलावों’ के असर से बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रतिबंध लड़कों और लड़कियों, दोनों के मामले में लगाए जाने चाहिए। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा, ‘आप पूछ रहे हैं कि क्या कर्फ्यू होना चाहिए? हां। क्या इसे लड़कों और लड़कियों, दोनों के लिए होना चाहिए? हां, होना चाहिए।’ मेनका ने कहा, ‘मैं यह बात एक अभिभावक के रूप में कह रही हूं। उन्हें अपने समय का उपयोग पढ़ाई में करना चाहिए।’
इससे पहले एक टीवी न्यूज चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ‘अपनी बेटी या बेटे को कॉलेज भेजने वाली अभिभावक के रूप में मैं चाहूंगी कि वे सुरक्षित रहें और संभवत: एक सुरक्षा तो उन्हें अपने ही संबंध में चाहिए।’ मेनका ने कहा, ‘जब कोई 16 या 17 साल का होता है तो हॉर्मोन के स्तर पर काफी नाजुक होता है। लिहाजा अपने हॉर्मोंस के विस्फोटक बदलावों से खुद को बचाने के लिए शायद एक लक्ष्मण रेखा खींची जानी चाहिए।’
हालांकि, मेनका ने ‘हॉर्मोंस के लिहाज से नाजुक’ संबंधी अपनी टिप्पणी का यह कहते हुए बचाव किया कि वह जो कुछ कहना चाहती थीं, उसका मतलब यह था कि ‘स्टूडेंट्स अपने नए परिवेश और आजादी को लेकर उत्साहित होते हैं। उन्हें अपने इर्द-गिर्द सुरक्षा के एक घेरे की जरूरत होती है। हॉर्मोंस के मामले में मेरा आशय किसी सेक्सुअल बात से नहीं था।’