Tuesday, April 16, 2024
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गुजरात हाईकोर्ट ने कहा SIT की जांच में खामियां! नरोदा पाटिया दंगा

SI News Today

गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 नरोदा पाटिया दंगा मामलों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) को फटकार लगाते हुए कहा कि उसकी जांच में कई खामियां थीं. न्यायमूर्ति हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने यह भी कहा कि एसआईटी ने जो जांच की है उस पर अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता. एसआईटी का गठन वर्ष 2008 में सु्प्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया गया था.

हाईकोर्ट ने एक दिन पहल बीजेपी सरकार में पूर्व मंत्री माया कोडनानी समेत 17 अन्य को बरी कर दिया था जबकि बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी समेत 13 लोगों की दोषी माना था. निचली अदालत से बरी किए गए तीन अन्य लोगों को भी हाईकोर्ट ने दोषी करार दिया. कोडनानी को वर्ष 2008 में एसआईटी ने ही पहली बार आरोपी बनाया था.

दंगे में 97 लोगों की हुई थी हत्या
नरोदा पाटिया दंगा मामले में भीड़ ने 97 लोगों की हत्या कर दी थी. हाईकार्ट ने बाबू बजरंगी सहित 13 व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखी और पहली बार तीन और व्यक्तियों को दोषी ठहराया. वहीं अदालत ने 2012 में एक निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराये गए 32 लोगों में से 18 को बरी कर दिया.

माया कोडनानी 2002 में बीजेपी की विधायक थीं और निचली अदालत ने उन्हें नरोदा पाटिया हत्या मामले की ‘सरगना’ बताते हुए 28 साल की सजा सुनायी थी. गुजरात दंगों के दौरान नरोदा पाटिया सबसे भीषण घटना थी. कोडनानी 2007 में गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बनीं. हालांकि मार्च 2009 में उन्होंने मामले में गिरफ्तार होने पर इस्तीफा दे दिया.

कोर्ट ने कहा-कोडनानी को लेकर कोई भी गवाह स्वीकार नहीं
हाईकोर्ट ने कोडनानी को बरी करते हुए कहा कि उनकी भूमिका को लेकर गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने यह उल्लेख नहीं किया कि उन्होंने उनसे प्रासंगिक समय पर बात की.

अदालत ने कहा कि वह गवाहों के विरोधाभासी बयानों पर विश्वास करने को जोखिम भरा पाती है और इसलिए कोडनानी को लेकर गवाहों के किसी भी गवाही को स्वीकार नहीं किया जाता. अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने कोडनानी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी) के तहत एक आपराधिक षड्यंत्र के लिए दोषी ठहराया था लेकिन सबूतों से आरोप स्थापित नहीं हुए.

कोडनानी को मिला संदेह का लाभ
हाईकोर्ट ने कहा कि कोडनानी को संदेह का लाभ दिया जाता है क्योंकि उन्हें पहली बार 2008 में विशेष जांच दल (एसआईटी) ने आरोपी बनाया जबकि मूल प्राथमिकी में उनका नाम नहीं था.

न्यायमूर्ति हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया की खंड़पीठ ने 2012 के विशेष एसआईट अदालत के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर अपना फैसला सुनाते हुए बजरंगी सहित 16 व्यक्तियों को दोषी ठहराया जबकि कोडनानी सहित 18 अन्य को बरी कर दिया. 16 दोषियों में से एक को छोड़कर सभी को 21 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा दी गई है. एक व्यक्ति को 10 वर्ष की सजा सुनायी गई है. इनमें से तीन को निचली अदालत ने बरी कर दिया था.

विशेष एसआईटी अदालत ने अगस्त 2012 में मामले के 61 आरोपियों में से 32 दोषियों को दोषी ठहराया था और 29 को बरी कर दिया था.

हाईकोर्ट ने 32 में से 18 को बरी किया
हाईकोर्ट ने 32 में से 18 को बरी कर दिया और 13 की दोषीसिद्धि बरकरार रखी. निजली अदालत द्वारा दोषी ठहराये गए व्यक्तियों में से एक दोषी की सुनवायी के दौरान मृत्यु हो गई थी. खंडपीठ ने कहा कि आज पहली बार दोषी ठहराये गए तीन व्यक्तियों को सजा नौ मई को सुनायी जाएगी.

हाईकोर्ट ने बजरंगी को दो अन्य दोषियों प्रकाश राठौड़ और सुरेश झाला के साथ आपराधिक षड्यंत्र का दोषी पाया. उनकी दोषसिद्धि पांच गवाहों के बयानों पर आधारित था जिन्होंने कहा कि तीनों अपराध स्थल पर मौजूद थे. हाईकोर्ट ने कहा कि पत्रकार आशीष खेतान का मौखिक सबूत स्वीकार किया जाता है जिन्होंने तीनों दोषियों का स्टिंग आपरेशन किया था.

अदालत ने यद्यपि बजरंगी की स्वभाविक मृत्यु तक जेल की सजा को घटाकर 21 वर्ष सश्रम कारावास कर दिया. यह घटना गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बों में हुये अग्निकांड के एक दिन बाद की है. इस घटना में अहमदाबाद के नरोदा पाटिया क्षेत्र में 28 फरवरी 2002 को एक भीड़ ने 97 लोगों की हत्या कर दी थी.

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