Railway breaks record of Turtle, speed of freight forward max 0.047 Km / hrs.
#indianrailway #IndianRail #lateindianrail #MalGadi #PassangerTrain
भारतीय रेलवे यात्री गाड़ियों को पीछे कर पहले मालगाड़ी को आगे भेजती हैं, क्यूंकि मालगाड़ियों से ढुलाई करके मोटा मुनाफा कमाया जा सके। इसके लिए पूरे देश में जगह जगह बहस भी होती है और ट्विटर फेसबुक पर भारतीय रेल की शिकायतों का अम्बार लगा है, मगर रेलवे के कानो पर जूँ तक नहीं रेंगती। मगर हम जिस मामले कि बात करने जा रहे हैं उसमे भी रेलवे फ़िसड्डी निकला।
दरअसल हुआ यूँ है कि मात्र विशाखापट्टनम से 1400 किलोमीटर की दूरी तय कर बस्ती तक पहुँचाने में मालगाड़ी के एक वैगन को साढ़े 3 साल लग गए। विशाखापट्टनम चला वैगन साढ़े तीन साल बाद बुधवार को बस्ती पहुंचा। रेलवे अधिकारी उस समय अचंभित हो गए जब उन्होंने वैगन नम्बर 107462 को चेक किया तो पाया कि साल 2014 में यह वैगन विशाखापटनम से इण्डियन पोटास कंपनी ने खाद मेसर्स रामचन्द्र गुप्ता बस्ती की दुकान को भेजने के लिए बुक किया था।
ये भी पढ़ें – यात्री रेलों के घंटों लेट होने की वजह- कारोबारियों के अनुसार मालगाड़ियों का चलवाना
रेलवे अपनी जिम्मेदारियों से कैसे मुँह चुराता है इसी बात से पता चलता है कि वैगन बुक करने के बाद जब कई महीनो तक मेसर्स रामचन्द्र गुप्ता तक खाद नहीं पहुंची तो उन्होंने रेलवे को दर्जनों पत्र लिखा गया। साढ़े 3 साल से अपने पीठ पर खाद लादकर ये वैगन पूरे देश में इधर से उधर भटकता रहा, अपने मालिक का पता पूछता रहा मगर लापरवाही की इन्तेहाँ देखिये सैकड़ों स्टेशनों से गुजरने के बावजूद रेलवे प्रशासन ने गायब हुए इस वैगन को ढूढ़ने की कोशिश तक नहीं की।
मालगाड़ी के वैगन में पड़े पड़े अब तो खाद भी खराब हो चुकी है। लेकिन रेलवे प्रशासन ने इस वैगन की पीठ से वजन उतारकर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर रख दिया है। खाद खराब होने की वजह से न तो उसको दुकानदार ले रहे हैं और न भेजने वाला। माल की कीमत लगभग 10 लाख रूपए है। मगर रेलवे को इससे क्या मतलब नुकसान चाहे खाद के मालिक का हो या उसे पाने वाले का उसकी अपनी अन्टी में तो किराये का सारा पैसा आ गया ना !!