Saturday, July 27, 2024
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किसान का दिल्ली में क्या काम ?

SI News Today

What is purpose of Farmers in Delhi?

 

किसान का दिल्ली में क्या काम ! दिल्ली को किसान पसंद नहीं आते। मैं जब पहली बार दिल्ली आया था तो किसान ही था। शर्ट पे गमछा रख लेने वाला, पैंट के नीचे चप्पल पहनने वाला। शहर वालों को लगता है कि चप्पल पहनने वाले बौचट होते हैं। मगर चप्पल पहनने के पीछे गहरी साइंस है। खेत में किसान लोग अक्सर नंगे पैर ही काम करते हैं और मेरे जैसे लोग, जो पैदा ही किसान हुए थे, उनके पंजे आगे से चौड़े हो जाते हैं। जूते पैर काटते हैं। (ये मुझे दूसरी बार गोरखपुर से निकलने पर समझ आया )

उस वक़्त दिल्ली के मेरे रिश्तेदार मुझे किसी से मिलवाते, कहीं घुमाने लेकर जाते, तो लोग मेरी तरफ़ देखकर हंसते थे। मैं भी बदले में मुस्कुरा देता। तब लगा कि दिल्ली को किसान पसंद हैं, बड़ा मिलनसार शहर है। लेकिन दिल्ली की यही खासियत है, यहां भरम बहुत जल्दी टूटते हैं। करोल बाग़ की एक बड़ी दुकान में घुसने से, सिक्योरिटी गार्ड ने रोक दिया। जंतर मंतर के टिकट की लाइन में लोग धक्का-मुक्की कर रहे थे, मुझ किनारे खड़े को पुलिस वाले ने सबसे पहले ठेला। मुझे समझ नहीं आता था ! जैसा कि मैंने पहले भी बताया है आपको, अपने वक़्त का बारहवीं पास मैं, अंग्रेज़ी में फर्स्ट डिवीजन लाने वाला, दिल्ली में अपने साथ हुए इस बर्ताव को नहीं समझ पाता।

समझा एक दिन, तो मालूम चला कि दिल्ली को किसान समझ में नहीं आते। इसे मज़दूर समझ आते हैं, गंवार समझ आते हैं, या फिर ‘एम्प्लॉयी’। यहां किसान मज़दूर समझे जाते हैं। दिल्ली की डिक्शनरी में किसान का मतलब गंवार होना है, और गंवार का अर्थ अनपढ़। मैं घूमने आया था, वापिस चला गया। लेकिन फिर लौटा, अब गमछा नहीं था। पसीना बगल काटता था, जूते पैर काटते थे। लेकिन अब कोई हंसता नहीं था, मेरी जेब में गांधी मुस्कुराते थे। मैं किसान नहीं था अब, ग़ुलाम था। सॉरी, ‘एम्प्लॉयी’। लेकिन करोल बाग़ के सरीन ब्रदर्स से शर्ट खरीद कर पहनता था।

मैं भी चिढ़ता हूं किसानों से। जाने क्यों ज़लील होने दिल्ली आते हैं! ये नहीं कि चुपचाप दिल्ली की मज़दूरी करें और खुश रहें।
#गोरखपुरटूदिल्ली_34

साभार – Subodh (रीवा सिंह की वाल से)

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