Thursday, April 25, 2024
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आखिर क्यों कहते हैं लोग जीजाबाई भोसले को एक प्रेरक माता, क्या है उनका इतिहास

SI News Today

Why do people say Jijabai Bhosale is a motivational mother, what is their history.

एक ऐसी तेजस्वी महिला जिन्होंने जीवन भर पग-पग पर विरीत परिस्थितियों व कठिनाइयों का सामना बड़े ही धैर्य के साथ किया। जिन्होंने अपने पुत्र को महान योद्धा व स्वतन्त्र हिन्दू राष्ट्र का छत्रपति बनाने के लिए बचपन से ही वहादुरों व शूरवीरों की कहानियां शुनाकर और अपनी सारी शक्ति, योग्यता और बुद्धिमत्ता लगा दी। आज हम आपको बताएंगे उस महान महिला के बारे में जिनका नाम है जीजाबाई और जिनको लोग प्राय: जीजाबाई शाहजी भोसले राजमाता जीजाबाई व जीजाई के नाम से जानते हैं। जी हां वहीं जीजाबाई जो मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की माता है। तो आईये जानते हैं जीजाबाई का इतिहास।

महाराष्ट्र राज्य के बुलडाणा जिले के सिंदखेड राजा के लखोजीराव जाधव की बेटी जीजाबाई भोसले का जन्म 12 जनवरी 1598 को हुआ था।  उस समय की परम्पराओ को देखते हुए बहुत कम उम्र में ही निजामशाही के दरबार में सैन्य दल के सेनापति शाहजी राजे भोसले से उनका विवाह हो गया। जीजाबाई ने 8 बच्चों में उनकी 6 बेटिया व 2 बेटे थे। और उनमें से ही एक शिवाजी महाराज भी थे।

जहां एक चतुर व बुद्धिमान महिला जीजाबाई ने इतिहास में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये जो मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिये सही सिद्ध हुए। जीजाबाई शिवाजी को प्रेरणा से भरी कहानिया सुनाती थी और उन्ही कानियों से प्रेरित होकर 17 वर्ष की आयु में ही शिवाजी ने स्वराज्य हासिल करने का मन बना लिया। जीजाबाई ने शिवाजी को उंगली पकड़ के चलना तो सिखाया साथ ही उन्हें एक महान शासक भी बनाया जिसके वह बालक हिन्दू समाज का संरक्षक व गौरव बना। इतना ही नही उसने दक्षिण भारत में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की और स्वतन्त्र शासक की तरह अपने नाम का सिक्का चलवाया तथा ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के नाम से ख्याति प्राप्त की।

कहा जाता है कि वह शिवाजी की सिर्फ माता ही नहीं बल्कि उनकी मित्र व मार्गदर्शक भी थीं। क्या आप जानते हैं कि जब शिवाजी एक योद्धा के रुप में आकार ले रहे थे तभी जीजाबाई ने एक दिन शिवाजी से कहा कि  बेटा तुम्हें सिंहगढ़ के ऊपर फहराते हुए विदेशी झंडे को किसी भी तरह से उतार फेंकना है और ऐसा तुम्हें करना ही होगा वरना मैं तुम्हें अपना बेटा नही समझूंगी। फौरन ही शिवाजी बोल पड़े कि मां मुगलों की सेना बहु बड़ी है और हम अभी मजबूत स्थिति में नहीं हैं तो ऐसे में उन पर विजय पाना मुश्किल है। शिवाजी के यह शब्द उनके लिए तीर के समान थे, और बेटे के मुंह से ऐसा शब्द सुनने के बाद वह क्रोधित हो उठी और उन्होंने क्रोध गुस्से से कहा कि तुम अपने हाथों में चूडियां पहनकर घर पर रहो। अब मैं सिंहगढ पर आक्रमण करके उस विदेशी झंडे को उतार फेंकूगी। मां का यह जवाब शिवाजी को हैरान कर दिया जिसके बाद उन्होंने मां की भावनाओं का सम्मान करते हुए फौरन ही नानाजी को बुलवाया और आक्रमण की तैयारी करने को कहकर योजना बनाते हुए सिंहगढ़ पर आक्रमण कर एक बड़ी जीत हासिल की। पर कुछ ही समय पश्चात 17 जून 1674 को जीजाबाई का निधन हो गया।

मां के निधन के बाद भी छत्रपति शिवाजी महाराज कभी भी उनके बताए रास्ते से नहीं हटकर पूरा जीवन अपने लोगों की रक्षा में लगा दिया। सह बात सच है कि अपनी मां के साथ व उनकी नसीहतों के चलते ही छत्रपति शिवाजी महाराज आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं। और धन्य है वह माता जिसने से शूरवीर बेटे को जन्म दिया और उसे एक महान योद्धा बनने के लिए प्रेरित किया।

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