Monday, December 2, 2024
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नीतीश कुमार ने जिस अफसर की बचाई नौकरी वो करवाता है बाल तस्करी?

SI News Today

कन्हैया भेलारी

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग कॉनक्लेव में बिहार के सीएम नीतीश कुमार पटना के एक होटल में एकत्रित प्रबुद्धजनों को बता रहे थे कि कैसे मानव तस्करी एक संगठित अपराध और सामाजिक बुराई के रूप में सभ्य समाज के सामने गंभीर चुनौती है। उन्होंने कहा कि ‘‘ह्यूमन ट्रैफिकिंग रोकना हमारी प्राथमिकता है। साल 2008 में हमारी सरकार ने इसके लिए नीति और कार्यक्रम बनाए थे। समाज कल्यााण, श्रम संसाधन और पुलिस विभाग ने कार्रवाई भी की है।’’ सरकारी अधिकारियों ने बताया कि जनवरी 2013 से दिसम्बर 2016 के बीच कुल 8327 बच्चे गायब हुए, इनमें से 5256 की तलाश की गई लेकिन 3071 बच्चे अभी भी गायब हैं जिनकी खोज की जा रही है। लेकिन हकीकत यह है कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर सरकार द्वारा दिया गया यह आंकड़ा सच्चाई से कोसो दूर है।

7 सितम्बर 2014 को मुज्जफरपुर में मानव तस्करी पर आयोजित एक सेमिनार-कम-ट्रेनिंग प्रोग्राम का उद्घाटन करते हुए तिरहुत प्रक्षेत्र के डीआईजी अजय मिश्रा ने कहा था कि बिहार में हर महीने 4000 बच्चे-बच्चियों की तस्कारी होती है। उन्होने दुःख जाहिर करते हुए खुलासा किया था कि पुलिस उन लोगों को चिन्हित करने में नाकाम रही है जो इस धंधे मे सक्रिय हैं। मुज्फ्फरपुर के जिलाधिकारी अनुपम कुमार भी उस समारोह में उपस्थित थे। ‘सखी’ एनजीओ की संचालिका सुमन सिंह भी अजय मिश्रा के आंकड़े से इतेफाक रखती हैं। वो कहती हैं, ‘‘किडनैप्ड बच्चों को तलाशने या छुड़ाने में बिहार सरकार के किसी भी डिपार्टमेंट से हमलोगों को उम्मीद के मुताबिक सहयोग नहीं मिलता है। अभी एक वीक पहले हमने अपने स्तर से 250 बच्चों को मानव तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया है।’’

बहरहाल, वहां मौजूद कई लोग ऐसे भी थे जो अपने-अपने एनजीओ के मार्फत राज्य में ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर सराहनीय काम कर रहे हैं। उन्हीं में से एक ने जनसत्ता.कॉम को जानकारी दी, ‘‘मानव तस्करी का यह घिनौना खेल राज्य में कुछ चुनिंदा वरीय पुलिस अधिकारियों के संरक्षण में होता है। चुराई गई लड़कियों को छुपाकर रखने के लिए मुज्जफरपुर में बाजाप्ता कई बंकर बनाए गए हैं।’’ एक एनजीओ संचालिका ने बताया, ‘‘हमने एक बार मुज्जफरपुर में पदस्थापित एक पुलिस अधिकारी से मिलकर बंधक बनाई गई लड़कियों को छुड़ाने की गुहार की तो उसने मुझे ही धमकाया कि भागो नहीं तो तुम्हें ही उस केस में फंसा दूंगा।’’

दरअसल, यह गिरोहबाज पुलिस अफसर सुरा से तो परहेज करता है लेकिन सुन्दरियों का भंवरा बताया जाता है। अपने द्वारा की गई गलती या यूं कहें कि राजनीति का चस्का, के कारण वह एक बार ऐसे घनचक्कर में फंसा था कि उसकी नौकरी लगभग चली गई थी लेकिन ‘भक्त वत्सल’ वजीरे आला ने लाइफ सेविंग ड्रग से उसको बचा लिया। छपी खबर है कि थूक चाटकर उस अफसर ने कसम खाई कि ताजिन्दगी पॉलिटिक्स के बारे में नहीं सोचेगा।

उधर, पूछने पर श्रम विभाग का एक अधिकारी झुंझुलाकर बताता है कि ‘‘मैन पावर की कमी के कारण हमलोग सीएम के ‘सात निश्चय’ के अलावे और किसी दूसरे टास्क की तरफ नजर नहीं दौड़ा पा रहे हैं क्योंकि सावधानी हटी तो नौकरी गई।’’ उसी तरह पुलिसवाले रोना रोते हैं कि ‘‘सारा ध्यान दारू सीज करने और दारूबाजों को पकड़ने पर है, भांड़ में गई मानव तस्करी।’’

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