Saturday, July 27, 2024
featuredदिल्ली

अपने साथ विवादों को जोड़ रही आप सरकार

SI News Today

अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने बीते 9 मई को हुए विधानसभा के विशेष सत्र में जो किया, उसका खमियाजा विधानसभा को लंबे समय तक भुगतना पड़ सकता है। आप ने बिना नियमों में बदलाव किए विधानसभा में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) हैक करने का प्रदर्शन कर विवादों का पिटारा खोल दिया है। भाजपा ने इसके खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की है। हाल ही में भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने इसे विधानसभा की अवमानना मानकर कार्रवाई करने की मांग की है।  दिल्ली विधानसभा के गठन के समय से जुड़े लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने कहा कि कल कोई सदस्य त्रिशूल या भाले को अपने धर्म से जोड़कर उसके साथ विधानसभा में आने की जिद करे तो उसे कैसे रोका जा सकता है। पंजाब से लोकसभा के सदस्य बने एसएस मान को तलवार के साथ सदन में नहीं आने दिया गया और बिना शपथ लिए उनकी सदस्यता समाप्त हो गई। इसी विधानसभा में लिखे दाम से ज्यादा पैसे लेने के सबूत के तौर पर शराब की बोतल लाने वाले कांग्रेस सदस्य मुकेश शर्मा की सदस्यता जाते-जाते बची। संसद और विधानसभाएं नियमों से ज्यादा परंपराओं से चलती हैं। नियम भी वही बनाए जाते हैं जो परंपराओं में आते रहते हैं। पिछली बार आप सरकार ने रविवार और सार्वजनिक अवकाश के दिन विधानसभा सत्र बुलाकर न केवल नियमों की अनदेखी की बल्कि परंपराओं को भी तोड़ा। कर्मचारियों व अधिकारियों को छुट्टी के दिन अतिरिक्त पैसे देकर जब्२ारन काम पर बुलाया गया। इससे समय और धन दोनों का नुकसान हुआ। इस बार और भी कई नई परंपराएं शुरू की गर्इं। बिना उपराज्यपाल की अनुमति के विधेयक पेश किए गए जो काफी समय से अटके पड़े हैं। संसद राष्ट्रपति और विधानसभा सत्र राज्यपाल बुलाते हैं और जिस दिन सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जाता है उसके दूसरे दिन सत्रावसान के लिए राष्ट्रपति, राज्यपाल व उपराज्यपाल के पास फाइल भेजी जाती है। फिर नया सत्र उनकी ही अनुमति से बुलाया जाता है। एक तरह से यह परंपरा बन गई है कि हर सदन के साल में तीन सत्र होंगे। इसका एक कारण यह है कि दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतर न रहे। विशेष परिस्थिति में राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेश से विशेष सत्र बुलाया जाता है।

आप सरकार ने दो साल में सत्रावसान करवाया ही नहीं, बल्कि पहले सत्र को ही चलता हुआ मान कर बिना उपराज्यपाल की जानकारी के विधानसभा अध्यक्ष से कह कर बैठक बुला ली। इतना ही नहीं, एक बार तो सरकार ने उपराज्यपाल के खिलाफ ही विशेष बैठक बुला ली। बीते 9 मई के विशेष सत्र के बाद भाजपा नेता लवली ने कहा कि 1993 में बनी दिल्ली विधानसभा की 2013 तक केवल तीन विशेष बैठकें हुर्इं। वहीं आप सरकार ने सवा दो साल में छह विशेष बैठकें बुला लीं और एक बार भी उपराज्यपाल से इजाजत नहीं ली। विधानसभा के नियमों के मुताबिक, कोई भी इलेक्ट्रॉनिक सामान सदन में नहीं लाया जा सकता। कौन-कौन से सामान सदन में नहीं लाए जा सकते, इसके लिए सूची बनी है, जिसमें बदलाव सदन ही कर सकती है। विधानसभा अध्यक्ष सदन के मुखिया होते हैं, लेकिन वे सदन की राय से ही सदन को चलाने के लिए बाध्य हैं। एसके शर्मा बताते हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा में एक सदस्य ने गुस्से में रीडर के पास रखा पेपरवेट दूसरे सदस्य पर फेंका। उसके बाद न केवल उसकी सदस्यता समाप्त कर दी गई, बल्कि सदन में पेपरवेट, स्टेपलर आदि ले जाने पर पाबंदी लगा दी गई।

इतना ही नहीं, मौजूदा सरकार ने कई और नई परंपराएं शुरू की हैं। यह कैसे संभव है कि सरकार निर्देश दे और विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा परिसर में बिना नियम के बनाए गए 21 संसदीय सचिवों के लिए कमरे तैयार करवाए। इस विधानसभा के पुराने अध्यक्षों ने विधानसभा की स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए न केवल अपनी पार्टी की सरकारों का विरोध किया बल्कि उपराज्यपाल और केंद्र सरकार से भी लड़ाई मोल ली। लंबे समय तक दिल्ली विधानसभा के सचिव रहे शर्मा कई और उदाहरण बताते हैं जिसमें विधानसभा की स्वायत्तता विधानसभा अध्यक्षों के प्रयास से बचती रही, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन विधानसभा अध्यक्षों ने उपराज्यपाल या दिल्ली सरकार की अवमानना की। सालों तक दिल्ली सरकार में मंत्री रहे और अब भाजपा से जुड़ चुके अरविंदर सिंह लवली का कहना है कि केजरीवाल सरकार मूल विषय से ध्यान हटाने के लिए जान-बूझकर इस तरह के काम करती है। चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए। इस विशेष सत्र से सदन की गरिमा कम हुई है।

SI News Today

Leave a Reply