Thursday, December 7, 2023
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कांग्रेस के लिए आसान नहीं सड़क की लड़ाई

SI News Today

नगर निगम चुनाव के नतीजों ने निगम की सत्ता पर काबिज होने की आम आदमी पार्टी (आप) की उम्मीदों पर पानी जरूर फेरा, लेकिन वापसी की उम्मीद कर रही कांग्रेस को भी इससे भारी झटका लगा, जिससे उबरने में उसे काफी वक्त लगेगा। लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने वाली कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट अपने कार्यकर्ताओं में लड़ने का हौसला बनाए रखने का है।  इसी को भांप कर प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन और प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ने अपने पद से इस्तीफा दिया था, जिसे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अस्वीकार कर दिया। संभव है कि कांग्रेस के खराब नतीजों में निगम चुनाव के ऐन पहले पार्टी छोड़ने वाले नेताओं- पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष अंबरीष गौतम व दिल्ली महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष बरखा सिंह का योगदान रहा हो, लेकिन चुनाव के समय बने माहौल ने इन नेताओं के अलावा भी कई बड़े नेताओं को नाराज कर दिया था। यह तो साबित हो गया है कि चुनावों में आप की जीत कांग्रेस के वोट बैंक के आधार पर ही हुई थी।

2013 के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों के वोट से कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों ने भी आप को वोट दिया तो कांग्रेस के वोट का औसत घट कर दस फीसद से भी कम हो गया। आप को 2015 के चुनाव में 54 फीसद वोट मिले। जाहिर है उसे भाजपा के कहे जाने वाले वोट भी मिले होंगे। कांग्रेस के नेताओं को समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिए। लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहे जय प्रकाश अग्रवाल को 2014 में बदलकर अरविंदर सिंह को अध्यक्ष बनाना तो समझ में आता है, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में लवली के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अचानक अजय माकन को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने और लवली का टिकट तय होने के बाद चुनाव न लड़ने की घोषणा ने कांग्रेस में नाराजगी बढ़ाने का काम किया। नगर निगम चुनाव से पहले हुए राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में भाजपा जीती लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन इसलिए खुश हैं क्योंकि कांग्रेस के वोट में करीब 21 फीसद की बढ़ोतरी हुई और उसके वोट पर कब्जा करके दिल्ली में सरकार बनाने वाली आप तीसरे नंबर पर पहुंच गई। पंजाब विधानसभा चुनाव में भी आप को मात मिली और कांग्रेस जीती।

इससे कांग्रेसी खेमे में 23 अप्रैल को होने वाले निगम चुनावों में बेहतर करने की उम्मीद बढ़ी। निगम चुनाव में भले ही भाजपा जीती, लेकिन उसके वोट नहीं बढ़े। आप के वोट 54 से घटकर 26 फीसद हो गए। कांग्रेस के वोट भी बढ़े लेकिन वह तीसरे नंबर पर रही। उसे 22 फीसद वोट मिले। कांग्रेस की परेशानी यह रही कि पिछले कई चुनावों में दूसरे नंबर पर आने से, उसे तुरंत अपने वोट लौटने का भरोसा हो गया था। संयोग से चुनाव के दौरान कांग्रेस में काफी हंगामा रहा। कई नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और कइयों ने नाराज होकर चुनाव में काम नहीं किया।चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस में निराशा छा गई। अगर नतीजों के बाद आप में घमासान न मचता तो हालात बेकाबू हो जाते। वहीं आजकल आप में जो कोहराम मचा है उससे तो पार्टी के वजूद पर ही सवाल उठ रहा है। हालांकि इस झगड़े से कांग्रेस को काफी फायदा मिला है। उसे लगता है कि गैर-भाजपा मतों पर उसकी दावेदारी पहले जैसी हो जाएगी और उसके वोट लौट आएंगे। इसी बहाने कांग्रेस नेतृत्व को अपने लोगों को जोड़े रखने में सहूलियत हो सकती है। फिलहाल सवाल यह है कि दो साल तक संघर्ष करने वाले कांग्रेस कार्यकर्ता और कितना संघर्ष कर पाएंगे क्योंकि लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले कांग्रेस नेताओं के लिए लंबे समय तक सड़क पर बने रहना आसान नहीं है।

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