केजरीवाल सरकार की आम आदमी कैंटीन योजना के आदेशों को उनके ही स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग ने मानने से इनकार कर दिया है। इस बारे में विधानसभा सचिवालय के उप सचिव ने 20 मार्च को दिल्ली मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग को दी थी, लेकिन विभाग ने यह आदेश मानने से साफ इनकार कर दिया।
विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि एक तरफ तो सरकार पिछले दो साल से आम आदमी कैंटीन खोलने की बात को विभिन्न विज्ञापन माध्यमों के जरिए जोर-शोर से उठाती रही है और दूसरी तरफ इस संबंध में तमाम दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि कैंटीन खोलने के लिए केजरीवाल सरकार ने अभी तक न तो कोई तैयारी और न ही कोई तर्कसंगत कार्रवाई की है। इस पत्र से यह भी साफ हो रहा है कि मंत्रिमंडल को इस बात की जानकारी तक नहीं है कि आम आदमी कैंटीन खोलने के लिए किस विभाग को जिम्मेदारी सौंपी जाए।
गुप्ता ने कहा कि पिछली सरकार द्वारा जो जनाहार कैंटीन व्यवस्था शुरू की गई थी, उसे बंद करने में वर्तमान सरकार ने कोई देरी नहीं की, लेकिन उसके स्थान पर गरीबों को सस्ता भोजन दिए जाने की कोई भी वैकल्पिक योजना अब तक नहीं शुरू की गई।
स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग की ओर से मंत्रिमंडल का आदेश न मानना इस बात का सबूत है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार प्रशासनिक रूप से केवल कागजों पर रह गई है। केजरीवाल सरकार ने आम आदमी कैंटीन के जरिए अस्पतालों, कार्यालयों, झुग्गी बस्तियों, औद्योगिक क्षेत्रों, बाजारों व शैक्षिक संस्थानों में सुबह-शाम का नाश्ता और दोपहर व रात का भोजन केवल 5 से 10 रुपए में उपलब्ध कराने का वादा किया था, ताकि 10 लाख मजदूर, 5 लाख हॉकर और झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले 4 लाख से ज्यादा लोगों को पौष्टिक आहार मिल सके। गुप्ता ने कहा है कि उन्होंने 7 मार्च को हुई विधानसभा की बैठक में केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया था कि वह गरीबों की हमदर्द बनती है। आम आदमी कैंटीन के लिए उसने बजट में 60 करोड़ रुपए का प्रावधान करके वाहवाही तो लूट ली, लेकिन कैंटीन अभी तक नहीं शुरू की।