दिल्ली हाई कोर्ट ने एक युवक को रेप और प्रताड़ित करने के मामले में सजा देने से यह कहकर मना कर दिया कि महिला परिपक्व है वह जानती थी कि उसके और आरोपी के बीच में क्या हो रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला ने 2016 में आरोपी के खिलाफ रेप का मामला दर्ज कराया जबकि उसके मुताबिक 2008 में उसका रेप हुआ था। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई भी सबूत नहीं है कि जिससे साबित हो सके कि आरोपी ने महिला की इज़ाजत के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। महिला परिपक्व है वह अच्छे से समझती थी कि दोनों के बीच में क्या हो रहा है। इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने आगे कहा कि महिला के पास ऐसा कोई भी सबूत नहीं है जिससे साबित हो सके कि शारीरिक संबंध बनाते समय महिला परिपक्व नहीं थी और जो आरोपी और महिला के बीच में हुआ, उसकी महिला को कोई समझ नहीं थी।
एडिशनल सेशन जज प्रवीन कुमार ने कहा कि आरोपी और महिला के बीच में जो हुआ वह आपसी रजामंदी के साथ हुआ, इसलिए व्यक्ति पर कोई भी केस नहीं बनता। जज ने आगे कहा कि एफआईआर हर केस में बहुत जरूरी होती है, लेकिन इस मामले में 8 साल के बाद केस दर्ज कराया गया। जज ने कहा कि इस प्रकार के केस में जल्दी एफआईआर कराई जाती है, तो पुलिस आरोपी को तुरंत हिरासत में लेकर उसके खिलाफ सबूत जुटा सकती है। इस मामले में इतने सालों में आरोपी को मौका मिल गया कि वह अपने खिलाफ सबूतों को मिटा सके। जिस समय यह वारदात हुई महिला को उसी समय आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी लेकिन उसने यह मौका गंवा दिया।
जज ने कहा कि महिला को आरोपी के चुंगल से निकल भागने के कई मौके मिले बावजूद इसके वह आरोपी के साथ संबंध बनाती रही। इतना ही नहीं महिला ने अपने साथ हुई घटना की जानकारी किसी को भी नहीं दी, जो उसकी मदद कर सके। अभियोजन पक्ष द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार महिला दक्षिणी-पश्चिमी दिल्ली की रहने वाली है। यह मामला उस समय सामने आया जब महिला के पति ने उसके फोन में अन्य व्यक्ति के संदेश देखे। महिला की मुलाकात उस व्यक्ति के साथ 2008 में हुई थी। महिला के पति ने एफआईआर में पुलिस को बताया कि उस आदमी ने 2016 तक कई मौकों पर महिला के साथ रेप और मारपीट की थी।