Saturday, July 27, 2024
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ये है दिल्ली का सबसे VIP कार नंबर

SI News Today

दिल्ली वालों को वीवीआईपी कार नंबर रखने का काफी शौक है। यही वजह है कि दिल्ली परिवहन विभाग की वेबसाइट पर नीलामी के लिए लगाया गया वीवीआईपी नंबर ‘0001’ की बोली 16 लाख रुपये लगाई गई। इस नंबर के लिए नीलामी के दौरान काफी डिमांड देखी गई। नंबर के नीलामी के लिए तय राशि से बोली की शुरुआत हुई और अंत में यह नंबर 16 लाख रुपये में बिकी। इस वीवीआईपी नंबर को पालम लैंड हॉस्पीलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने खरीदा।

परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इससे पहले विभाग ने सबसे महंगा नंबर 12.50 लाख रुपये में नीलाम किया था। यह नीलामी सितम्बर 2014 में हुई थी। गाड़ी खरीदने वालों की पंसद में 0007 व 0009 नंबर भी अधिक है। 0007 को 10.40 लाख रुपये में फरवरी 2015 में दिया गया था और 0009 नंबर 8.50 लाख में सितंबर 2014 में बिक्री किया गया है। वीआईपी जैसे दिखने वाले नंबरों के लिए परिवहन विभाग में काफी मांग थी। इन मांग के आधार पर ही दिल्ली में नंबरों के लिए नीलामी प्रक्रिया की व्यवस्था लागू की गई थी।

अधिकारी ने बताया कि नीलामी से सरकारी खजाने को काफी लाभ पहुंचा है। पिछले कुछ सालों में वीवीआईपी नंबर को लेकर दिल्ली वालों में काफी क्रेज देखा गया है। लोगों में मानना है कि वीवीआईपी नंबर से समृद्धि आती है। इसलिए जन्मतिथि से लेकर अन्य जरुरत की चीजों में लोगों को खास नंबर की तलाश रहती है।

परिवहन विभाग के विशेष आयुक्त के.के दहिया ने बताया कि सिर्फ छह महीनों में हमने 29 वीवीआईपी नंबरों को बेचकर 54.70 लाख रुपये कमाए हैं। पिछले साल हमने 151 नंबरों को बेचा था और उससे 2.29 करोड़ रुपये अर्जित किए थे। दहिया ने कहा कि खास नंबरों की मांग दिवाली के समय काफी बढ़ जाती है।

परिवहन विभाग के मुताबिक, वीवीआईपी नंबरों की कीमत शुरुआत में नीलामी के लिए 5 लाख रुपये रखी गई है। इसके बाद नीलामी में जैसे-जैसे लोग अधिक बोली लगाते हैं इसकी कीमत बढ़ती रहती है। अंत में सबसे अधिक बोली लगाने वाले संबंधित व्यक्ति को नंबर आवंटित कर दी जाती है।

परिवहन विभाग के रिकार्ड के मुताबिक ‘0001’ नंबर अब तक सबसे ऊंचे दाम पर बिकी है। इससे पूर्व वीवीआईपी जैसे दिखने वाले इन फैंसी नंबर को बिना किसी धनराशि के लोगों को सिरियल के हिसाब से दिया जाता था। सामान्य प्रकार से आवंटित किए जाने वाले नंबरों के लिए किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं है। ये व्यवस्था दिल्ली में 2014 से लागू है।

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