Thursday, July 25, 2024
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दहशत का दमन करने वाला अमन का योद्धा

SI News Today

पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ दीवार बनकर खडे होने वाले पूर्व पुलिस महानिदेशक कंवरपाल सिंह गिल उर्फ केपीएस गिल को हमेशा उनकी अनोखी कार्यशैली के कारण याद किया जाएगा। गिल ने जिस रणनीति के तहत पंजाब में आतंकवाद का जड़ से सफाया किया, उसे कई देशों और राज्यों ने लागू किया। मई,1988 में उन्होंने खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ आॅपरेशन ब्लैक थंडर की कमान संभाली थी। यह अभियान काफी कामयाब रहा था। देश के इस मकबूल सुपरकॉप का शुक्रवार को दिल्ली के गंगारामअस्पताल में निधन हो गया। वे 82 वर्ष के थे। उनके निधन पर सियासी हस्तियों और उनके प्रशंसकों ने शोक जताया है। आतंकवाद को फौलादी मुट्ठी से नाथने वाले केपीएस गिल पंजाब में दो बार पुलिस महानिदेशक के पद पर रहे। पहली बार 1988 से 1990 तक उन्होंने पुलिस महानिदेशक का कार्यभार संभाला और केंद्र सरकार ने उन्हें पदमश्री के सम्मान से अलंकृत किया। इसके बाद जब पंजाब में आतंकवाद पूरे चरम पर था तो वर्ष 1991 में उन्हें पंजाब की बागडोर सौंपी गई। यह पंजाब का वह काला दौर था जब गिल से पहले कई पुलिस अधिकारी आतंकवाद के आगे घुटने टेक चुके थे।

केपीएस गिल ने आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ने से पहले न केवल आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों का अध्ययन किया बल्कि पंजाब व केंद्र सरकार से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सभी तरह के अधिकार लिए। गिल को जब यह पता चला कि पंजाब में खालिस्तानी अभियान और आतंकी गतिविधियों में एक समुदाय के 90 फीसद युवा शामिल हैं तो उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ बड़ी मुहिम छेड़ डाली। गिल ने इस मुहिम के दौरान आतंकी गतिविधियों में लिप्त युवाओं को मुख्यधारा में लाने या सफाया करने के लिए युवाओं का ही इस्तेमाल किया। गिल ने कई बार आतंक विरोधी आपरेशन में सेना के सहयोग के लिए भी युवाओं को तैनात किया। केपीएस गिल के कार्यकाल में पंजाब में सैकड़ों एनकांउटर हुए।

इस बीच कई मानवाधिकार संगठनों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। गिल पंजाब में आतंकवाद का खात्मा करने में इसी आधार पर सफल हुए जब उन्होंने आतंकी गतिविधियों में लिप्त पंजाब के युवाओं को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए उनके विरुद्ध पंजाब के ही युवाओं को खड़ा किया। गिल ने स्थानीय लोगों की मदद लेकर आतंकियों का खात्मा किया। गिल का यह फार्मूला इतना कारगर साबित हुआ कि पंजाब से एक दशक पुराने आतंकवाद का सफाया हो गया।

29 दिसंबर, 1934 को लुधियाना में जन्मे केपीएस गिल हमेशा सुर्खियों में रहे। अपने तेजतर्रार मिजाज और रंगीनमिजाजी के कारण भी कुछ विवाद उनकेसंग रहे। यहां तक कि चचर््िात रूपन देओल बजाज प्रकरण के कारण उन्हें कानूनी प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी। पर वे आजीवन अपने रंग-ढंग और दुर्दम्य अंदाज के साथ जीते रहे। गिल भारतीय पुलिस सेवा से साल 1995 में सेवानिवृत्त हो चुके थे। इसके अलावा गिल इंस्टीट्यूट फॉर कॉनफ्लिक्ट मैनेजमेंट और इंडियन हॉकी फेडरेशन के भी अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद साल 2000 से 2004 के बीच श्रीलंका की तत्कालीन सरकार ने लिब्रेशन टाइगर्स आॅफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए भी गिल की मदद मांगी थी। साल 2006 में छत्तीसगढ़ राज्य ने गिल को नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए सुरक्षा सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया था। छत्तीसगढ़ में गिल कुछ ही समय तक काम कर पाए थे कि उन्हें पद से हटना पड़ गया।

केपीएस गिल के जीवन पर लिखी गई किताब ‘दि पैरामाउंट कॉप’ भी उनकी तरह विवादों में रही थी। इस किताब में गिल और प्रकाश सिंह बादल की बैठकों के बारे में लिखा गया था। गिल व बादल के बीच बैठकों का वह दौर था जब बादल आतंकवादियों के हक में बोलते थे, जबकि गिल सरकार के नुमाइंदे के तौर पर आतंकवाद से लड़ाई लड़ रहे थे।
केपीएस गिल को पंजाब में चरमपंथ को खत्म करने का श्रेय मिला, वहीं मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल भी उठाए थे और फर्जी मुठभेड़ों के अनेक मामले न्यायालय में भी पहुंचे थे। उनकी मृत्यु के बाद एक बडेÞ वर्ग में जहां शोक की लहर व्याप्त है वहीं गरमपंथी विचारधारा के लोगों ने इसे वर्षों पहले मारे गए अपने साथियों के साथ हुआ इंसाफ बताया है।

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