क्या सज़ा का डर अपराध को रोक सकता है?हत्या और बलात्कार पर कड़ा कानून है लेकिन रोक कितनी है, आप और हम सुबह के बुलेटिन में देख सकते हैं।अपराध को रोकने के लिए तत्पर योगी सरकार नए नए कानून बना कर हम आपको सुरक्षित करने में लगी है।यही एक कदम शराब बंदी से भी जुड़ा हो सकता है। शराब बंदी एक बहुत सहासिक कदम है। भारत में शराब का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन वैदिक काल में भी सोमरस के रूप में शराब का प्रचलन था। ऋग्वेद में भी सोमरस का वर्णन है। आधुनिक काल में भारत में प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में पहला शराब का ठेका 1760 में फ्रांसिस ब्रेकेन द्वारा खोला गया।1832 तक शराब पूरी तरह प्रचलन में आ गयी और करीब 350 ठेके खोले गए। आज के समय भारत में करीब 24400 से भी अधिक ठेके हैं। भारत में करीब 80 करोड़ लीटर शराब बनती है।WHO के रिपोर्ट के अनुसार भारत की 30% जनसँख्या रोजाना शराब का सेवन करती है।11%भारतीय शराब के आदि हैं। भारतीय औसत 4.3 से 6.3 लीटर शराब प्रति वर्ष पीते हैं। बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में ये प्रतिशत बढ़ कर 11.3लीटर/वर्ष हो जाता है।WHO के अनुसार भारत में करीब 15 व्यक्ति प्रतिदिन केवल शराब सम्बंधित बिमारियों से मारे जातें हैं। सड़क दुर्घटना में भी शराब का अहम किरदार माना जाता है।शराब पीने के कई नुक्सान भी हैं,हमारे वेदों में भी शराब को अभिशाप कहा गया है।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।
अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।अगर गौर किया जाए तो बात भी सही है।इतनी बुराईयों के होने के बावजूद शराब बंदी से सरकार हिचकिचा क्यूँ रही हैं? कारण है राजस्व उत्तर प्रदेश में करीब 8000 शराब की दुकानें हैं,जिससे करीब 6000 करोड़ का राजस्व मिलता है। इसकी आपूर्ति सरकार कहाँ से करेगी?और उन 62 शराब की बड़ी फक्ट्रियों का क्या? खैर सुप्रीम कोर्ट ने एक हल्का सा सुधार लाने का प्रयास किया।राष्ट्रीय राजमार्ग और प्रांतीय मुख्य राजमार्ग से शराब की दुकाने 500 मीटर तक हटाई जाएँ। शराब की दुकाने राजमार्ग से हटा कर बस्तियों में लायी गयीं जहाँ लोगों ने इसका विरोध किया। कई राज्यों ने राजमार्गो के दर्जे पर विचार करना शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लखनऊ में करीब 200,कानपुर में 100 वाराणसी में 250 और इलाहाबाद में करीब 150 दुकाने बंद हो जाती हैं या उनको हटाना पड़ता है। क्या शराब बंदी ही समाज को सुधारने का अच्छा और उपयुक्त कदम है? जो हो भी सकता है। लेकिन शराब बंदी से कुछ समस्याएं भी पैदा होतें दिखीं। हरयाणा राज्य में शराब बंदी 1998 के करीब मुख्यमंत्री बंशीलाल ने की महिलाओं का जोरदार समर्थन देखने को मिला।लेकिन फिर इन्ही महिलाओं ने इसका विरोध किया।हरयाणा के लोग शराब पीने पंजाब और राजस्थान चले जाते और अवैध शराब लाते हुए जेल भी पहुँच गए। बाद में बंशीलाल को ये फैसला वापस लेना पड़ा और 2000 में सरकार से हाथ धोना पड़ा। बिहार के साथ भी यही कहानी है।अभी हाल में मैंने बिहार के सीतामढ़ी की यात्रा की वहाँ पता चला पहले लोग यहीं पर मदिरापान करके पड़े रहते थे लेकिन अब नेपाल जाकर शराब पीतें हैं। यह समस्या उत्तर प्रदेश में भी आ सकती है।बगल में नेपाल की सीमा और यहाँ पर अवैध शराब का धंधा भी अच्छे ढंग से फल फूल रहा है। शराब बंदी सरकार और प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगी।पुराने अनुभवों से ऐसा लगता है कि हड़बड़ी और बिना तैयारी के शराबबंदी के नियम को लागू करना नुकसानदेह सिद्ध होता है। आंध्रप्रदेश,तमिलनाडु मिजोरम और हरयाणा में शराब बंदी का प्रयोग विफल हो चुका है। शराब बंदी के होते ही अवैध जहरीली शराब से मरने वालों का खतरा बढ़ जाता है। योगी जी को ध्यान सबका रखना है। कहीं शराब स्टेटस सिम्बल और कहीं शराब अभिशाप है? और वैसे भी लोग कहते हैं”नशा शराब में होता तो नाचती बोतल” क्या समझा जाये व्यक्तित्व का सुधार जरूरी है या कोई कानून शराबियों को सुधार सकता हैं।।
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