लखनऊ में श्रद्धालु भगवान श्रीराम के भक्त बजरंगबली की अराधना के लिए पूरे साल बड़ा मंगल का इंतजार काफी उत्सुकता से करते हैं। साथ ही बड़े मंगल पर लाल लंगोट पहनकर सड़क पर लेट लेटकर दंडवत प्रणाम करते हुए हनुमान मंदिर पहुंचकर दर्शन करने की परंपरा भी बहुत पुरानी है।
लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में एक बार श्रद्धालुओं को तब मुश्किल का सामना करना पड़ा जब अंग्रेज अधिकारियों ने सत्याग्रही समझकर उन्हें रोक लिया। बैंक ऑफ बड़ौदा के पूर्व प्रबंधक अमर नाथ रावत ने बताया कि बात 1943 की है जब उनके पिता रामआसरे दास (अब दिवंगत) जो कैंट से लगे इब्राहिमपुर नीलमथा गांव में रहते थे,
चार-पांच मित्रों के साथ बड़े मंगल पर दर्शन के लिए सोमवार की शाम पांच बजे सड़क पर दंडवत करते हुए अलीगंज हनुमान मंदिर के लिए रवाना हुए। सड़क काफी गर्म थी, इसलिए वे किनारे उगी घास पर लेटते हुए जा रहे थे।
हवलदार ने अंग्रेज को समझाया
रेसकोर्स ग्राउंड के पास एक अंग्रेज अफसर अपनी पत्नी के साथ घोड़े पर जा रहा था। उसने उन्हें रोक लिया और कहा कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?
रावत बताते हैं कि पिताजी और दूसरे लोगों ने उन्हें बताया कि हम मंदिर जा रहे हैं, लेकिन अंग्रेज अफसर नहीं माना और उसने कहा कि तुम सभी गांधी के अनुयायी हो तथा इस प्रकार सुराज मांग रहे हो।
तुम वापस जाओ। गौरतलब है कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय चारबाग स्टेशन के पास जब अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों पर लाठीचार्ज किया तो वे लेट गए थे और भारत मां की जय बोलते रहे।
अंग्रेज अफसर ने इसी कारण श्रद्धालुओं को सत्याग्रही माना था। उधर, श्रद्धालुओं का मानना है कि एक बार परिक्रमा उठा लेने के बाद बिना दर्शन के इसे समाप्त नहीं किया जाता है, ऐसे में पिताजी एवं अन्य लोग काफी परेशान हो उठे थे।
लेकिन उसी समय एक भारतीय हवलदार उधर से गुजरा और उसने पूरी स्थिति समझते हुए अंग्रेज अफसर को समझाया। तब कहीं जाकर उसने इन श्रद्धालुओं को छोड़ा और वे मंदिर में जाकर दर्शन कर सके।