Saturday, April 20, 2024
featuredदुनियामेरी कलम से

चीन मेें ऐतिहासिक बदलाव का अहम महत्व बढेंगी वैश्विक चुनौतियां

SI News Today

मृत्युंजय दीक्षित

भारत के प्रमुख पड़ोसी देश व पूरी दुनिया को सीधी चुनौती दे रहे चीन में अहम बदलाव हुआ है। चीन में एकदलीय राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव हुआ है। वहां की संसद ने एक ऐतिहासिक संविधान संशोधन को मंजूरी दी है। ऐतिहासिक संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति शी चिनफिंग दो कार्यकाल पूरा करनेे के बाद भी आजीवन सत्ता में बने रहेंगे। 64 वर्षीय शी चिनफिंग इसी महीने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने जा रहे हैं। वह सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी ) और सेना प्रमुख हैं। वह पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष माओत्सेतुंग के बाद ऐसे पहले चीनी नेता हैं। जो आजीवन सत्ता में बने रह सकते हैं । चीनी संसद ने संविधान में ऐतिहासिक संशोधन करके देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए अधिकतम दो कार्यकाल की अनिवार्यता की दशकों पुरानी परम्परा को समाप्त कर दिया है। एनपीसी में प्रस्ताव के पक्ष में 2958 वोट पड़ेे जबकि विरोध में दो वोट पड़े और तीन सांसद अनुपस्थित रहे, विरोध में भी दो मत सरकार की परोक्ष अनुमति से ही पड़े ताकि विविधता की झलक दिखाई जा सके। यह चीन का नया तानाशाही प्रयोग है। मतदान के समय मतपत्रों का उपयोग किया गया जबकि हाथ उठाकर सहमति जताने या इलेक्ट्रानिक वोटिंग का भी विकल्प था। अब चीन में इस संशोधन के बाद एक दलीय शासन प्रणाली से एक नेता के शासन की ओर बढ़न का रास्ता साफ हो गया है। चीन में 1949 के बाद सबसे बड़ा राजनैतिक बदलाव हुआ है। राजनैतिक विश्लेषकों का मत है कि अब चीन के रूप में एक नया बेहद खतरनाक तानाशाह राष्ट्र का जन्म हुआ है।

अंतराष्ट्रीय विश्लेषकोें का अनुमान है कि बदला हुआ चीन तथा विस्तारवादी चीन अब एक नये तानाशाह के रूप में और अधिक खतरनाक तथा आक्रामक तेवरों के साथ दुनिया के सामने दिखलाई पड़ सकता है। विस्तारवादी चीन का मुूकाबला भारत और अमेरिका के साथ है। आज फेसबुक और सोशल मीडिया के युग में चीन के नये तानाशाहों का विरोध भी शुरू हो गया है। अमेरिका ब्रिटेन आदि अन्य देशों मे रह रहे चीन के लोकतंत्र समर्थक नागरिेकों ने विरोध शुरू कर दिया है।जिनकी आवाज को वहां की सरकार ने बंद करने का काम भी शुरू कर दिया है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का यह कार्यकाल कैसा होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन जब – जब चीन में ऐसे प्रयास हुए है। तब- तब ड्रैगन ने अपनी एक अलग ताकत ही दिखलायी है। माना जा रहा है कि शी के आजीवन कार्यकाल के दौरान भारत सहित दुनिया के प्रमुख देशों के साथ संबंधों में 360 डिग्री का बडत्रा बदलाव आ सकता है। भारत ओर चीन के बीच सीमा विवाद एक बड.ा गंभीर मसला हे। अभी हाल ही में डोकलाम विवाद के दौरान 73 दिनों की तनातनी ने काफी गम्भीर मोडत्र ले लिया था यहां तक कि युद्ध की नौबत आ गयी थी। चीन अरूणांचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता रहता है।

जब भी भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति व अन्य मंत्रियों आदि के दौरे वहं पर हेते हंै तो चीन की आंखेें टेढ़ी हो जाती हैं। आतंकी मसूद अजहर के मामले में चीन का रवैया नहीं बदल रहा है। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती भारत के लिए लगातार सिरदर्द बनी हुयी है। चीन खुलकर पाकिस्तान की ममदद कर रहा है। 2014 और 2017 के बीच भारत और चीन के बीच काफी तनाव रहा। चीन को यह अच्छी तरह से पता है कि एशिया में चीन के प्रभुत्व को चुनौती केवल भारत से ही मिलती दिखलायी पड़ रही है। यही कारण है कि चीन भारत के प्रति कुछ अधिक ही आक्रामक रहता है। अब जब सत्ता पर शी का आजीवन नियंत्रण हो गया है तब भारत के लिए और अधिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।

शी का कार्यकाल बढ़ाने से पूर्व ही चीन ने अपने रक्षा बजट बेतहाशा वृद्धि की है। चीन ने अपने रक्षा बजट में 8.1 फीसद की वृद्धि के साथ इस वर्या के लिए 175 अरब डालर के रक्ष बजट की घोषणा भी की है। अमेरिका के बाद चीन का रक्षा खर्च दुनिया में सबसे अधिक है। चीनी राष्ट्रपति का कहना है कि सेना को अत्याधुनिक बनाने पर फोकस को देखते हुए रक्षा बजट बढ़ाया गया। चीन काध्यान स्टीत्थ लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत और सेटेलाइट रोधी मिसाइल समेत कई नई सैन्य क्षमता विकसित करने पर है। चीन सरकार का कहना है कि अब हम अपनी राष्ट्रीय संप्रुभता, सुरक्षा और विकास हितों को सुरक्षित करेेंगे। चीन की सरकारी मीडिया ने रक्षा बजट को उचित बताया है। जिसके कारण भारत और अमेरिका के साथ चीन की तनातनी काफी बढ़ सकती है। चीन भारत के पड़ोसी देशों में भी अपना दबदबा बढ़ा रहा है। श्रीलंका में चीन की गतिविधियां बढ़ी है। नेपिाल में तो चीनी समर्थक सत्ता ही आ गयी है। नेपाल में ओली के पीएम बनने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने वहां की यात्रा की। नेपाली पीएम ओली चीन समर्थक माने जाते है। अब वहां पर चीन व पाकिस्तान भारत विरोधी नयी गतिविधियों को बेहिचक चला सकते हैं। चीन बांग्लादेश आदि को भी बरगलाने की साजिश रचता रहा है। अभी मलेशिया में जो संकट खड़ा हुआ और भारत चाहकर भी वहां पर अपना हस्तक्षेप नहीं कर पा रहा उसके पीछे चीन की ही चाल है। ताइवान को लेकर भी चीन का रवैया काफी आक्रामक रहा है। अतः शी के नये कार्यकाल के दौरान यदि किसी देश को सबसे अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है तो वह है भारत ।

लेकिन यह बड़ेे दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय संसद को जिन बेहद गंभीर सुरक्षा विषयों को लेकर सदन में जोरदार चर्चा होनी चाहिये थी वहीं वहां का सारा समय केवल हंगामें की भेंट ही चढ़ जाता है। वहीं सेना ने सैन्य आधुनिकीरण के लिए कम बजट आवंटन पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चो पर जंग के खतरों को देखते हुए सेनाके आधुनिकीकरण को और गति देनेे की जरूरत है। सूना का 68 फीसदी साजोसमान संग्रहालय में विरासत के रूप में रखने लायक हो चुका है। उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद्र ने स्थायी समिति के समक्ष यह सनसनीखेज बयान दिया है। उन्होंनेे कहा कि बजट की कमी के चलते बजट की कमी के चलते कई परियोजनाएं बंद करनी पड़ सकती हैं। भजपा नेता मेजर जनरल रिटायर्ड बी सी खंडूरी की अध्यक्षता वाली रक्ष संबंधी स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की गयी है। भारत की सैन्यस तैयारियां को लेकर यह रिपोर्ट बेहद गंभीर है वह भी तब जब सीमा पर चारों ओर से संकट गहरा रहा है। भारत के सभी दलों को संसद चलाने में सहयोग करना चाहिये ताकि गंभीर विषयों पर भी चर्चा हो सके। नहीं तो आने वाले समय में भारत की समस्यों और गहरी हो सकती हैं।

SI News Today

Leave a Reply