एक समय तक भारत मे सुबह की शुरुवात रेडियो पर बजते रामायण चौपाई और भजन से होती देखी जाती थी।लेकिन अब थोड़ा बदलाव आया है,अब सुबह कानो में तमाम न्यूज चैनलों की एक मिनट में 100 खबरों वाली धुन पड़ती है। यह तमाम न्यूज चैनल अब हमारे दिन की शुरुवात से रात के खाने तक मे शामिल हैं।और अब कहीं न कहीं हमको इनकी आदत सी पड़ती जा रही है।और समाज को देखने से लेकर सरकार चुनने तक हम इन पर निर्भर से हैं।1766 में विलियम्स वोल्टस ने भारत मे प्रथम समाचार पत्र प्रकाशित करने का एक असफल प्रयास किया।इसके बाद जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 में पहला समाचार पत्र “बंगाल गजट”का प्रकाशन किया।लेकिन कम्पनी के विरोध में लिखने पर इसके प्रेस को जब्त कर लिया गया। इसी बीच कुछ अन्य अंग्रेज़ी अखबार भी प्रकाशित हुए, जैसे- बंगाल में ‘कलकत्ता कैरियर,एशियाटिक मिरर, ओरियंटल स्टार,मद्रास में ‘मद्रास कैरियर’, ‘मद्रास गजट’; बम्बई में ‘हेराल्ड’, ‘बांबे गजट’ आदि।जेम्स सिल्क बर्किघम एक ब्रिटिश व्यपारी जिसने 1818 में कलकत्ता जनरल नामक अखबार प्रकाशित किया और इसने ही प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के रूप में प्रस्तुत किया।तबसे आज तक प्रेस और संचार माध्यम में न जाने कितने क्रांतिकारी परिवर्तन हुए।जिस तरह हमारा देश और यहां के लोग विकसित होते जा रहे हैं उस की अपेक्षा हमारी समाचार एजेंसियां कहीं न कहीं पथभ्रष्ट होती दिख रही है।कोई पूछे कि इनका समाज मे काम क्या है? इनका काम तथ्यों की प्राप्ति कर उसका मूल्यांकन करना और उसको हमतक पहुंचाना,लेकिन ऐसा अब दिखता नहीं है।अब तथ्यों की प्राप्ति करके उसको एक विशिष्ट विचारधारा में लपेट कर लोगों को उस को मानने पर बाध्य किया जा रहा है।कभी कोई पत्रकार कन्हैया कुमार की लड़ाई लड़ रहा है और कभी कोई बुरहानवानी को एक क्रांतिकारी बता रहा है,और कुछ पत्रकार तो राज्यसभा में जाने को उत्तेजित दिख रहे हैं।जैसा कि हम जानते हैं पत्रकार एक सामाजिक दर्पण है लेकिन अब यह दर्पण समाज की समस्याएं समाज की आवाज न बन कर कुछ विशिष्ठ व्यक्तियों के क्रियाकलाप का अध्यन केंद्र बन सा गया है। अभी हाल ही में एक World Press Freedom Index सर्वे के माध्यम से पता चला कि स्वतंत्र पत्रकारिता में भारत का 180 देशों में 136वां स्थान है इस सर्वे को लेकर न्यूज़ चैनल सरकार को दोष देने में जुट गए कि प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में है।और 20 जनवरी 2017 में World Economics Forum की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की मीडिया और पत्रकारिता विश्व की दूसरी सबसे भ्रष्ट और अविश्वसनीय संस्था है।इस सर्वे का जिक्र किसी भी न्यूज़ चैनल के बुद्धिजीवियों ने नही किया क्योंकि इस बार प्रहार सरकार नहीं इन पर खुद था।जैसे पुलिस को देख कर आम आदमी में एक अजीब भय व्याप्त है वैसा ही हाल पत्रकारों का भी है।पत्रकार अब एक ब्लैकमेलर हो गया है।जो अधिकारियो नेताओं और व्यपारियों की कमियां ढूंढ कर उसको समाज़ को न दिखा कर पहले ब्लैकमेल करता है और धन उगाही करता है।हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माने जाने वाला मीडिया अब टी.आर.पी का भूखा है।चाहे टी.आर.पी के लिए उसे स्वर्ग की सीढ़ी से लेकर रावण की ममी तक ढूंढनी पड़े।मनुष्य एक जिज्ञासु प्राणी है जिसको कुछ ऐसा देखने मे मज़ा आता है जो उसकी पहुंच से बाहर हो,इस जिज्ञासा को जूलियन असांजे भाँप चुका था,और उसने विकीलीक्स के जरिये ऐसा कुछ सामने रखा कि जिससे दुनियां के लोग और तमाम सरकारें हिल सी गयीं थी।इसी प्रयास में भारतीय मीडिया भी लगा है।अब तो हद यह हो गयी कि सोशल मीडिया पर तमाम झूठे न्यूज़ आर्टिकल देखे जाते हैं जिसमे कभी बाबा रामदेव के एक्सीडेंट और कभी अमिताभ बच्चन की मौत की झूठी जानकारी दी जाती है और जिस पर लोग विश्वास भी कर बैठते हैं।आज के समय मे प्रेस मीडिया लोगों के विश्वसनीयता पर खरा नही उतर रहा है।और इसका कारण वो पत्रकार हैं जो पत्रकारिता का उपयोग केवल ब्लैकमेलिंग के लिए करता है।मैं जिस गोंडा जिले का निवासी हूं वहां पत्रकारों की कार्यशैली देख कर आश्चर्य होता है।यहां पर कुछ ऐसे भी हैं जिनको पत्रकारिता से कोई सरोकार नहीं बस वो पत्रकारिता के नाम पर नेता गिरी और अधिकारियों में अपनी धौंस जमाते हैं और दलाली का काम करते हैं।एडमंड बर्क ने पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ के रूप में परिभाषित किया है।अगर पत्रकारिता में जड़ित भ्रष्टाचार खत्म नहीं किया गया तो आने वाले समय मे लोकतंत्र की इमारत को तीन स्तम्भ पर टिकाना कठिन होगा।।
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the authorPushpendra Pratap singh
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