Tuesday, March 26, 2024
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निवेश और रोजगार सृजन के दावे साबित हो रहे हैं हवाई

SI News Today

ख्वाब कुर्सी का
नीकु यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कम कुशल नहीं हैं। बात कहने का अलग अंदाज ठहरा। जो कहना चाहते हैं उसे जुबान पर लाए बिना इस तरीके से पेश कर देते हैं कि परोक्ष रूप से मकसद पूरा हो जाता है। फिर फरमाया है कि बनना तो दूर की बात है, प्रधानमंत्री पद के बारे में वे तो सोच भी नहीं सकते। उनकी पार्टी जद (एकी) बहुत छोटी है। उसकी हैसियत इतनी है ही नहीं कि प्रधानमंत्री बनने की बात भी की जाए। ऐसा करना मूर्खता ही कहलाएगी। हां, अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते वे उसे राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने के बारे में जरूर सोचते हैं। ऐसे मौके पर ही वे प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी की चर्चा करने से नहीं चूकते। इसीलिए कहा कि नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। जनता ने उन्हें शक्ति दी तो वे देश के प्रधानमंत्री हो गए। नीकु बेशक सफाई दें कि वे प्रधानमंत्री पद के बारे में नहीं सोचते पर लगे हाथ यह भी जोड़ देते हैं कि राजनीति में सब कुछ अनिश्चित होता है। कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। इसका निहितार्थ तो यही हुआ कि उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। हर नेता सियासत की ऊंची कुर्सी पर पहुंचने की महत्त्वाकांक्षा रखता है। पर धीरज से ऐसा उपक्रम और प्रयास करने वाले इक्के-दुक्के ही होते हैं जो अपना मकसद पूरा करने में सफल हो जाते हैं। नीकु भी तो अपना दायित्व निभा ही रहे हैं। नरेंद्र मोदी की तरह वे भी ज्यादातर वक्त कामकाज में ही खपाते हैं। बहुत कम सोते हैं। आशावादी भी हैं। यह बात कई बार कबूल कर चुके हैं। ऐसे में आज नहीं तो कल जरूर जनता उन्हें भी इतनी ताकत दे सकती है कि जिस मुकाम पर आज नरेंद्र मोदी पहुंच गए हैं, वहां नीकु भी पहुंच जाएं। वे अगर आशावादी हैं तो उनके चाहने वाले भी उनसे कम आशावादी नहीं हैं।
नौकरी के लाले
रोजगार के मोर्चे पर अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना वादा पूरा करने में सफल नहीं हो पाए हैं तो रिपोर्ट कार्ड ममता बनर्जी का भी उजला कहां है। पश्चिम बंगाल की सत्ता में छह साल पूरे कर चुकी है तृणमूल कांग्रेस की सरकार। लेकिन निवेश और रोजगार सृजन के दावे तो हवाई ही साबित हुए हैं। विदेशी निवेश एमओयू से आगे नहीं आ पाया है तो रोजगार के अवसर भी कहां बढ़ पाए। हां, शनिवार को जरूर सरकारी कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन किया सरकार ने। लेकिन छह हजार खाली पदों पर 25 लाख बेरोजगार शामिल हुए परीक्षा में। साढ़े पांच लाख तो बिहार और झारखंड के ही थे। हावड़ा और सियालदह के रेलवे स्टेशनों पर पहले ही दिन जनसैलाब दिखा। नतीजतन महानगर की जीवनचर्या गड़बड़ा गई। सरकारी नौकरी के लिए भर्ती की कवायद लंबे अरसे बाद दिखी तो भीड़ ज्यादा होती ही। कहने को तो ग्रुप डी कर्मचारियों के पद हैं पर आवेदक तो इंजीनियर से लेकर पीएचडी तक रहे। इसे सूबे में बेरोजगारी का बैरोमीटर भी मान सकते हंै। पिछली भर्ती तो इन पदों पर वाममोर्चा सरकार के जमाने में ही हुई थी। आवेदकों की सुविधा के लिए यों राज्य परिवहन विभाग ने बड़ी तादाद में विशेष बसें चलाई थीं। रेलवे ने तो खैर खास बंदोबस्त कि ए ही थे। लेकिन आवेदकों की दिक्कतें फिर भी कम नहीं हुईं। इसके बाद भी अगर नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने के लिए अपनी पीठ ठोंके तो इसे खुशफहमी ही कहेंगे सरकार की।

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