जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने रविवार को कहा कि जब हिंदू बाबरी मस्जिद मामले की बात करते हैं तो उन्हें सेक्युलर के तौर पर देखा जाता है, लेकिन जब वह राम मंदिर मामले पर बोलते हैं तो उन्हें सांप्रदायिक ठहरा दिया जाता है। एक समारोह में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले पर मदनी ने कहा, जब कुछ हिंदू बाबरी मस्जिद मामले की बात करते हैं तो उन्हें धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है, लेकिन जब मैं राम मंदिर मामले पर बोलता हूं तो सांप्रदायिक करार कर दिया जाता हूं। यहां हम अपनी चॉइस से भारतीय हैं, किसी चांस से नहीं। मुसलमानों ने एक इस्लामवादी शासन के ऊपर भारत को पसंद किया है, हमें उस पर खेद नहीं है।
एटिट्यूड पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, एक बार जब यह बदल जाएगा, तो मुद्दा खुद ही सुलझ जाएगा। समाज में संतों की प्रासंगिकता के बारे में जमीयत द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने मुस्लिमों से अनुरोध किया कि कभी भी उत्तेजित होकर भड़काऊ न बनें, क्योंकि गुस्सा समुदाय की कमजोरी है। इसके बजाय अपने विकास के रास्ते के रोड़ों को दूर करने में संयम दिखाएं। उन्होंने पुरुषों से कहा कि वे अपनी पत्नियों का सम्मान करें और अधिकार बहाल करें।
आपको बता दें कि 21 मार्च को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) की तरफ से कहा गया था कि दोनों पक्ष राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले को कोर्ट के बाहर सुलझा लें तो ठीक रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है इसलिए इसको कोर्ट के बाहर सुलझा लेना चाहिए। कोर्ट ने इसपर सभी पक्षों को आपस में बैठकर बातचीत करने के लिए कहा था। लेकिन इस मामले पर बाबरी मस्जिद कमेटी ने सीजेआई खेहर की बात मानने से इनकार कर दिया था।
कमेटी के ज्वॉइंट कंवीनर डॉ एसक्यूआर इलयास ने कहा था , ‘हम लोगों को सीजेआई की बात मंजूर नहीं है। इलाहबाद हाई कोर्ट पहले ही अपना निर्णय दे चुका है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लगता है कि बातचीत का वक्त अब खत्म हो चुका है।’ उन्होंने बाबरी मस्जिद कमेटी और विश्व हिंदू परिषद के बीच हुई पिछली बातचीत का भी जिक्र किया था जो कि किसी फैसले पर नहीं पहुंची थी।